चंद्रकांता

Horror stories collection. All kind of thriller stories in English and hindi.
Jemsbond
Silver Member
Posts: 436
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: चंद्रकांता

Unread post by Jemsbond » 24 Dec 2014 15:12

हुक्म पा चेतराम तेजसिंह को लेने गया और मीरमुंशी ने भी पहरेवालों को महाराज का हुक्म सुनाया। उन लोगों को क्या उज्र था, तेजसिंह को अकेले रवाना कर दिया। तेजसिंह तुरन्त समझ गये कि कोई दोस्त जरूर यहाँ आ पहुंचा है तभी तो उसने ऐसी चालाकी की शर्त से मुझको बुलाया है। खुशी-खुशी चेतराम के साथ रवाना हुए। जब महफिल में आये, अजब तमाशा नजर आया। देखा कि एक बहुत ही खूबसूरत औऱत बैठी है और सब उसी की तरफ देख रहे हैं। जब तेजसिंह महफिल के बीच में पहुँचे, रम्भा ने आवाज दी, ‘‘आओ, आओ तेजसिंह, रम्भा कब से आपकी राह देख रही है ! भला वह बीन कब भूलेगी तो आपने नौगढ़ में बजायी थी !’’ यह कहते हुए रम्भी ने तेजसिंह की तरफ देखकर बायीं आँख बन्द की। तेजसिंह समझ गये कि यह चपला है, बोले, ‘‘रम्भा, तू आ गई। अगर मौत भी सामने नजर आती हो तो भी तेरे साथ बीन बजा के मरूंगा, क्योंकि तेरे जैसे गाने वाली भला काहे को मिलेगी !’’ तेजसिंह और रम्भा की बात सुनकर महाराज को बड़ा ताज्जुब हुआ मगर धुन तो यह थी कि कब बीन बजे और कब रम्भा गाये। बहुत उम्दी बीन तेजसिंह के सामने रक्खी गई और उन्होंनें बजाना शुरू किया, रम्भा भी गाने लगी। अब जो समा बंधा उसकी क्या तारीफ की जाये। महाराज तो सकते-की सी हालत में हो गये। औरों की कैफियत दूसरी हो गयी।

एक गीत का साथ देकर तेजसिंह ने कहा, ‘‘बस, मैं एक रोज में एक ही गीत या बोल बजाता हूं इससे ज्यादा नहीं। अगर आपको सुनने का ज्यादा शौक हो तो कल फिर सुन लीजिएगा !’’ रम्भा ने भी कहा, ‘‘हाँ, महाराज यही तो इनमें ऐब है ! राजा सुरेन्द्रसिंह, जिनके यह नौकर थे, कहते-कहते थक गये मगर इन्होंने एक न मानी, एक ही बोल बजाकर रह गये। क्या हर्ज है कल फिर सुन लीजिएगा।’’ महाराज सोचने लगे कि अजब आदमी है, भला इसमें इसने क्या फायदा सोचा है, अफसोस ! मेरे दरबार में यह न हुआ। रम्भा ने भी बहुत कुछ उज्र करके गाना मौकूफ किया। सभी के दिल में हसरत बनी रह गई। महाराज ने अफसोस के साथ मंजलिस बर्खास्त की और तेजसिंह फिर उसी चेतराम ब्राह्मण के साथ जेल भेज दिये गये।

महाराज को तो अब इश्क को हो गया कि तेजसिंह के बीन के साथ रम्भा का गाना सुनें। फिर दूसरे रोज महफिल हुई और उसी चेतराम ब्राह्मण को भेजकर तेजसिंह बुलाये गये। उस रोज भी एक बोल बजाकर उन्होंने बीन रख दी। महाराज का दिल न भरा, हुक्म दिया कि कल पूरी महफिल हो। दूसरे दिन फिर महफिल का सामान हुआ. सब कोई आकर पहले ही से जमा हो गये, मगर रम्भा महफिल में जाने के वक्त से घंटे भर पहले दांव बचा चेतराम की सूरत बना कैदखाने में पहुंची। पहरेवाले जानते ही थे कि चेतराम अकेला तेजसिंह को ले जायेगा, महाराज का हुक्म ही ऐसा है। उन्होंने ताला खोलकर तेजसिंह को निकाला और पैर में बेड़ी डाल चेतराम के हवाले कर दिया। चेतराम (चपला) उनको लेकर चलते बने। थोड़ी दूर जाकर चेतराम ने तेजसिंह की बेड़ी खोल दी। अब क्या था, दोनों ने जंगल का रास्ता लिया।

कुछ दूर जाकर चपला ने अपनी सूरत बदल ली और असली सूरत में हो गई, अब तेजसिंह उसकी तारीफ करने लगे। चपला ने कहा, ‘‘आप मुझको शर्मिन्दा न करें क्योंकि मैं अपने को इतना चालाक नहीं समझती जितनी आप तारीफ कर रहे हैं, फिर मुझको आपको छुड़ाने की कोई गरज भी न थी, सिर्फ चन्द्रकान्ता की मुरौवत से मैंने यह काम किया।’’ तेजसिंह ने कहा, ‘‘ठीक है, तुमको मेरी गरज काहे हो होगी ! गरजूं तो मैं ठहरा कि तुम्हारे साथ सपर्दा बना, जो काम बाप-दादों ने न किया था सो करना पड़ा !’’ यह सुन चपला हंस पड़ी और बोली, ‘‘बस माफ कीजिए, ऐसी बातें न करिए।’’ तेजसिंह ने कहा, ‘‘वाह, माफ क्या करना, मैं बगैर मजदूरी लिए न छोड़ूंगा।’’ चपला ने कहा, ‘‘मेरे पास क्या है जो मैं दूं ?’’ उन्होंने कहा, ‘‘जो कुछ तुम्हारे पास है वही मेरे लिए बहुत है।’’ चपला ने कहा, ‘‘खैर, इन बातों को जाने दीजिए और यह कहिए कि यहाँ से खाली ही चलियेगा या महाराज शिवदत्त को कुछ हाथ भी दिखाइएगा ?’’ तेजसिंह ने कहा, ‘‘इरादा तो मेरा यही था, आगे तुम जैसा कहो।’’ चपला ने कहा, ‘‘जरूर कुछ करना चाहिए !’’
बहुत देर तक आपस में सोच-विचारकर दोनों ने एक चालाकी ठहराई जिसे करने के लिए ये दोनों उस जगह से दूसरे घने जंगल में चले गये।

Jemsbond
Silver Member
Posts: 436
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: चंद्रकांता

Unread post by Jemsbond » 24 Dec 2014 15:12

अब महाराज शिवदत्त की महफिल का हाल सुनिए। महाराज शिवदत्तसिंह महफिल में आ विराजे। रम्भा के आने में देर हुई तो एक चोबदार को कहा कि जाकर उसको बुला लायें और चेतराम ब्राह्मण को तेजसिंह को लाने के लिए भेजा। थोड़ी बाद चोबदार ने आकर अर्ज किया कि महाराज रम्भा तो अपने डेरे पर नहीं है, कहीं चली गई। महाराज को बड़ा ताज्जुब हुआ क्योंकि उसको जी से चाहने लगे थे। दिल में रम्भ के लिए अफसोस करने लगे और हुक्म दिया कि फौरन उसे तलाश करने के लिए आदमी भेजे जायें। इतने में चेतराम ने आकर दूसरी खबर सुनाई कि कैदखाने में तेजसिंह नहीं है। अब तो महाराज के होश उड़ गये। सारी महफिल दंग हो गई कि अच्छी गाने वाली आई जो सभी को बेवकूफ बनाकर चली गई। घसीटासिंह और चुन्नीलाल ऐयार ने अर्ज किया, ‘‘महाराज बेशक वह कोई ऐयार था जो इस तरह आकर तेजसिंह को छुड़ा ले गया।’’ महाराज ने कहा, ‘‘ठीक है, मगर काम उसने काबिल इनाम के किया। ऐयारों ने भी तो उसका गाना सुना था, महफिल में मौजूद ही थे, उन लोगों की अक्ल पर क्या पत्थर पड़ गये थे कि उसको न पहचाना ! लानत है तुम लोगों के ऐयार कहलाने पर !’’ यह कह महाराज गम और गुस्से से भरे हुए उठकर महल में चले गये। महफिल में जो लोग बैठे थे उन लोगों ने अपने घर का रास्ता लिया। तमाम शहर में यह बात फैल गई ; जिधर देखिए यही चर्चा थी।

दूसरे दिन जब गुस्से में भरे हुए महाराज दरबार में आये तो एक चोबदार ने अर्ज किया, ‘‘महाराज, वह जो गाने वाली आयी थी असल में वह औऱत ही थी। वह चेतराम मिश्र की सूरत बनाकर तेजसिंह को छुड़ा ले गई। मैंने अभी उन दोनों को उस सलई वाले जंगल में देखा है।’’ यह सुन महाराज को और भी ताज्जुब हुआ, हुक्म दिया कि बहुत से आदमी जायें और उनको पकड़ लावें, पर चोबदार ने अर्ज किया-‘‘महाराज इस तरह वे गिरफ्तार न होंगे, भाग जायेंगे, हाँ घसीटासिंह और चुन्नीलाल मेरे साथ चलें तो मैं दूर से इन लोगों को दिखला दूँ, ये लोग कोई चालाकी करके उन्हें पकड़ लें।’’ महाराज ने इस तरकीब को पसन्द करके दोनों ऐयारों को चोबदार के साथ जाने का हुक्म दिया। चोबदार ने उन दोनों को लिए हुए उस जगह पहुंचा जिस जगह उसने तेजसिंह का निशान देखा था, पर देखा कि वहाँ कोई नहीं है। तब घसीटासिंह ने पूछा, ‘‘अब किधर देखें ?’’ उसने कहा, ‘‘क्या यह जरूरी है कि वे तब से अब तक इसी पेड़ के नीचे बैठे रहें ? इधर-उधर देखिए, कहीं होंगे !’’ यह सुन घसीटासिंह ने कहा, ‘‘अच्छा चलो, तुम ही आगे चलो।

वे लोग इधर-उधर ढूंढ़ने लगे, इसी समय एक अहीरिन सिर पर खंचिए में दूध लिए आती नजर पड़ी। चोबदार ने उसको अपने पास बुलाकर पूछा, ‘‘कि तूने इस जगह कहीं एक औरत और एक मर्द को देखा है ?’’ उसने कहा, ‘‘हाँ, हाँ, उस जंगल में मेरा अडार है, बहुत-सी गाय-भैंसी मेरी वहाँ रहती हैं, अभी मैंने उन दोनों के पास दो पैसे का दूध बेचा है और बाकी दूध लेकर शहर बेचने जा रही हूँ।’’ यह सुनकर चोबदार बतौर इनाम के चार पैसे निकाल उसको देने लगा, मगर उसने इनकार किया और कहा कि मैं तो सेंत के पैसे नहीं लेती, हाँ, चार पैसे का दूध आप लोग लेकर पी लें तो मैं शहर जाने से बचूं और आपका अहसान मानूं। चोबदार ने कहा, ‘‘क्या हर्ज है, तू दूध ही दे दे।’’ बस अहीरन ने खांचा रख दिया और दूध देने लगी। चोबदार ने उन दोनों ऐयारों से कहा, ‘‘आइए, आप भी लीजिए।’’ उन दोनों ऐयारों ने कहा, ‘‘हमारा जी नहीं चाहता !’’ वह बोली, ’’अच्छा आपकी खुशी।’’ चोबदार ने दूध पिया और तब फिर दोनों ऐयारों से कहा, ‘‘वाह ! क्या दूध है ! शहर में तो रोज आप पीते ही हैं, भला आज इसको भी तो पीकर मजा देखिए !’’ उसके जिद्द करने पर दोनों ऐयारों ने भी दूध पिया और चार पैसे दूध वाली को दिये।

अब वे तीनों तेजसिंह को ढूंढ़ने चले, थोड़ी दूर जाकर चोबदार ने कहा, ‘‘न जाने क्यों मेरा सिर घूमता है।’’ घसीटासिंह बोले, ‘‘मेरी भी वही दशा है।’’ चुन्नीलाल तो कुछ कहना ही चाहते थे कि गिर पड़े। इसके बाद चोबदार और घसीटासिंह भी जमीन पर लेट गये। दूध बेचने वाली बहुत दूर नहीं गई थी, उन तीनों को गिरते देख दौड़ती हुई पास आई और लखलखा सुंघाकर चोबदार को होशियार किया। वह चोबदार तेजसिंह थे, जब होश में आये अपनी असली सूरत बना ली, इसके बाद दोनों की मुश्कें बांध गठरी कस एक चपला को और दूसरे को तेजसिंह ने पीठ पर लादा और नौगढ़ का रास्ता लिया।

Jemsbond
Silver Member
Posts: 436
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: चंद्रकांता

Unread post by Jemsbond » 24 Dec 2014 15:13

तेजसिंह को छुड़ाने के लिए जब चपला चुनार गई तब चम्पा ने जी में सोचा कि ऐयार तो बहुत से आये हैं और मैं अकेली हूं, ऐसा न हो, कभी कोई आफत आ जाय। ऐसी तरकीब करनी चीहिए जिसमें ऐयारों का डर न रहे और रात को भी आराम से सोने में आये। यह सोचकर उसने एक मसाला बनाया। जब रात को सब लोग सो गये औऱ चन्द्रकान्ता भी पलंग पर जा लेटी तब चम्पा ने उस मसाले को पानी में घोलकर जिस कमरे में चन्द्रकान्ता सोती थी उसके दरवाजे पर दो गज इधर-उधर लेप दिया और निश्चिन्त हो राजकुमारी के पलंग पर जा लेटी। इस मसाले में यह गुण था कि जिस जमीन पर उसका लेप किया जाये सूख जाने पर अगर किसी का पैर उस जमीन पर पड़े तो जोर से पटाखे की आवाज आवे, मगर देखने से यह न मालूम हो कि इस जमीन पर कुछ लेप किया है। रात भर चम्पा आराम से सोई रही। कोई आदमी उस कमरे के अन्दर न आया, सुबह को चम्पा ने पानी से वह मसाला धो डाला। दूसरे दिन उसने दूसरी चालाकी। मिट्टी की एक खोपड़ी बनाई और उसको रंग कर ठीक चन्द्रकान्ता की मूरत बनाकर जिस पलंग पर कुमारी सोया करती थी तकिए के सहारे वह खोपड़ी रख दी, और धड़ की जगह कपड़ा रखकर एक हल्की चादर उस पर चढ़ा दी, मगर मुंह खुला रखा, और खूब रोशनी कर उस चारपाई के चारों तरफ वही लेप कर दिया। कुमारी से कहा, ‘‘आज आप दूसरे कमरे में आराम करें।’’ चन्द्रकान्ता समझ गई और दूसरे कमरे में जा लेटी। जिस कमरे में चन्द्रकान्ता सोई उसके दरवाजे पर भी लेप कर दिया और जिस कमरे में पलंग पर खोपड़ी रखी थी उसके बगल में एक कोठरी थी, चिराग बुझाकर आप उसमें सो रही।

आधी रात गुजर जाने के बाद उस कमरे के अन्दर से जिसमें खोपड़ी रखी थी पटाखे की आवाज आई। सुनते ही चम्पा झट उठ बैठी और दौड़कर बाहर से किवाड़ बन्द कर खूब गुल करने लगी, यहाँ तक कि बहुत-सी लौंडियाँ वहाँ आकर इकट्ठी हो गईं और एक जोर से महाराज को खबर दी कि चन्द्रकान्ता के कमरे में चोर घुसा है। यह सुन महाराज खुद दौड़े आये और हुक्म दिया कि महल के पहरे से दस-पांच सिपाही अभी आवें। जब सब इकट्ठे हुए, कमरे का दरवाजा खोला गया। देखा कि रामनारायण और पन्नालाल दोनों ऐयार भीतर हैं। बहुत से आदमी उन्हें पकड़ने के लिए अन्दर घुस गये, उन ऐयारों ने भी खंजर निकाल चलाना शुरू किया। चार-पांच सिपाहियों को जख्मी किया, आखिर पकड़े गये। महाराज ने उनको कैद में रखने का हुक्म दिया और चम्पा से हाल पूछा। उसने अपनी कार्रवाई कह सुनाई। महाराज बहुत खुश हुए औऱ उसको इनाम देकर पूछा, ‘‘चपला कहाँ है ?’ उसने कहा, ‘वह बीमार है’। फिर महाराज ने और कुछ न पूछा अपने आरामगाह में चले गये। सुबह को दरबार में उन ऐयारों को तलब किया। जब वे आये तो पूछा, ‘‘तुम्हारा क्या नाम है ?’’ पन्नालाल बोला, ‘‘सरतोड़सिंह।’’ महाराज को उसकी ढिठाई पर बड़ा गुस्सा आया। कहने लगे कि, ‘‘ये लोग बदमाश हैं, जरा भी नहीं डरते। खैर, ले जाकर इन दोनों को खूब होशियारी के साथ कैद रखो।’’ हुक्म के मुताबिक वे कैदखाने में भेज दिये गये।

महाराज ने हरदयालसिंह से पूछा, ‘‘कुछ तेजसिंह का पता लगा ?’’ हरदयालसिंह ने कहा, ‘‘महाराज अभी तक तो पता नहीं लगा। ये ऐयार जो पकड़े गये हैं उन्हें खूब पीटा जाये तो शायद ये लोग कुछ बतावें।’’ महाराज ने कहा, ‘‘ठीक है, मगर तेजसिंह आवेगा तो नाराज होगा कि ऐयारों को क्यों मारा ? ऐसा कायदा नहीं है। खैर, कुछ दिन तेजसिंह की राह औऱ देख लो फिर जैसा मुनासिब होगा, किया जायेगा, मगर इस बात का खयाल रखना, वह यह कि तुम फौज के इन्तजाम में होशियार रहना क्योंकि शिवदत्तसिंह का चढ़ आना अब ताज्जुब नहीं है।’’ हरदयालसिंह ने कहा, ‘‘मैं इन्तजाम से होशियार हूँ, सिर्फ एक बात महाराज से इस बारे में पूछनी थी जो एकान्त में अर्ज करूंगा।’’

जब दरबार बर्खास्त हो गया तो महाराज ने हरदयालसिंह को एकान्त में बुलाया और पूछा, ‘‘वह कौन-सी बात है ?’’ उन्होंने कहा, ‘‘महाराज तेजसिंह ने कई बार मुझसे कहा था बल्कि कुंवर वीरेन्द्रसिंह और उनके पिता ने भी फर्माया था कि यहां के सब मुसलमान क्रूर की तरफदार हो रहे हैं, जहां तक हो इनको कम करना चाहिए। मैं देखता हूं तो यह बात ठीक मालूम होती है, इसके बारे में जैसा हुक्म हो, किया जाये।’’ महाराज ने कहा, ‘‘ठीक है, हम खुद इस बात के लिए तुमसे कहने वाले थे। खैर, अब कहे देते हैं कि तुम धीरे-धीरे सब मुसलमानों को नाजुक कामों से बाहर कर दो।’’ हरदयालसिंह ने कहा, ‘‘बहुत अच्छा, ऐसा ही होगा।’’ यह कह महाराज से रुखसत हो अपने घर चले आये।

Post Reply